खता क्या थी मेरी ?
ना जाने मेरे भाग में क्या लिखा था ददू ? नियति ना जाने कौन से मोड़ पर ले जा रही थी मुझे।सैफ जैसे मेरे दिलो-दिमाग पर छा गया था मुझे यह भी भान नहीं रहा कि उसकी और मेरी जात बिरादरी बिल्कुल अलग है हमारा खान-पान , रहन-सहन सब जुदा था पर मन उसकी ओर खींचा चला जा रहा था।कहते हैं प्यार अंधा होता है वो ही बात मेरे साथ होरही थी मुझे भी अच्छा बुरा कुछ सूझ नहीं रहा था जब जरूरत से ज्यादा किसी को दबाया या उसकी इच्छाओं का हनन किया जाता है तो वो ओर मुखर हो जाता है।
छोटी मां तो मायके गयी थी पीछे से बड़े भाई छुट्टी में घर आये । मैंने बहुत जतन वह प्रेम से खाना बनाया।भाई भी मां की अनुपस्थिति में मेरे बहुत लाड़ करता था मेरे लिए शहर से बहुत सुंदर चांदी की पायल लाया था । मुझे बड़े भाई प्यार से मुनिया कहते थे बोले,"ले मुनिया ये पायल रख लें अपने छोटे-छोटे पैरों में पहनना। बहुत दिनों से मन था तेरे लिए कुछ लाऊं पर मां मेरी लायी चीज तेरे पास पहुंचने ही नहीं देती थी।अब सुन छोटी मां को मत दिखाना नहीं तो तुम से ले लेगी।"मैंने भी भाई की लाई हुई पायल को सहेज कर रख दियाऔर फटाफट खाना परोस लायी।जैसे ही बड़े भाई खाना खाने बैठे इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई।पहले तो मुझे मौका ही नहीं मिलता था दरवाजा खोलने का छोटी मां को ये पसंद नहीं था कि मैं किसी के सामने आऊ पर आज तो मुझे ही दरवाजा खोलना था जब मैं दरवाजे के पास गयी तो एक सिहरन सी दौड़ गयी, मन ने कहा कहीं सैफ तो नहीं है मैं तो जैसे दीवानी सी हो गयी थी।जैसे ही दरवाजा खोला भगवान ने जैसे मेरी सुन ली सामने सैफ ही खड़े थे दोनों हाथ जोड़े हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।मेरी तो जैसे जान ही निकल गई। इतने में अंदर से भाई ने आवाज लगाई ,"कौन है मुनिया?"धीरे से सैफ मुस्कुराते हुए मेरे पास से निकलते हुए फुसफुसाए ,"अच्छा जी मोहतरमा का एक ओर भी नाम है हमें तो एक ही नाम पता था।"मैं शर्म से गढ़ी जा रही थी।सैफ जोर से आवाज लगाते हुए भाई के पास चले गये ,"अरे मैं हूं भई। "भाई ने जब सैफ को देखा तो बड़े जोश से बोले,"अरे आ यार सैफ ।तू कैसे टपक पड़ा आज ही तो आया हूं शहर से इतनी जल्दी तेरे पास खबर भी पहुंच गयी ।"बस यार दिल से दिल की राह होनी चाहिए रास्ते अपने आप निकल आते हैं,सैफ मुझे देख कर मुस्कुरा दिए। मुझे तो इतनी शर्म आ रही थी कि कहीं कोना मिले और मैं छुप जाऊ। बड़े भईया बोला रहे थे और सैफ! खाना तो खायेगा , कनक जा एक थाली सैफ के लिए भी लगा दे ।जी भईया ! मैं यहकह कर रसोई घर में खाना परोसने चली गयी। क्या क्या डालूं उनकी थाली में मन कर रहा था दुनिया का सारा प्यार उनकी थाली में डाल दूं।जब मैं खाना लायी तो सैफ ने पहला निवाला खाते ही कहा,"माशाअल्लाह! जिन्होंने भी खाना बनाया है अमृत है उनके हाथों में।कहते हैं ना कि खाना अच्छा बना हो तो बनाने वाले के हाथ चूमने का दिल करता है पर ये बात मैं कह नहीं सकता।"इतना कह कर सैफ जोर से हंस पड़े बड़े भाई भी मुस्कुराते हुए बोले ,"यार अन्नपूर्णा है मेरी बहन जिस के भी जाए गी भाग खुल जाएं गे उस के तो। "सैफ मेरी तरफ मुस्कुराते हुए सिर हिलाते हुए बोले,"बिल्कुल यार तुम्हारी बहन तो सही में खुदा की ओर से दिया तोहफा है।"मुझे ऐसे लग रहा था जैसे सैफ की खुशबू मेरे अंदर से आ रही हो।जब तक सैफ घर रहे मैं उनके इर्द-गिर्द मंडराती रही ।कभी अपने में सिकुड़ती कभी मुखर ।जब सैफ जा रहे थे तो मन कर रहा था वो ना जाए। क्या यही प्यार था ददू?"कनक ठाकुर साहब की तरफ देखते हुए बोली। ठाकुर महेन्द्र प्रताप उस भामरी को देखें जा रहे थे जो जीवित ना होते हुए भी जीवन की बातें कर रही थी ।इतने में दुकान से थोड़ी सी दूरी पर मंदिर का घंटा बजा उठा।कनक उठते हुए बोली ,"अच्छा ददू जाने का समय हो गया अब चलती हूं।कल फिर आऊंगी तुम जरूर आना ।" जरूर आऊं गा बिटिया मैं आऊं गा और तेरा आगे का वृत्तांत सुनु गा ।यह कह कर कनक की आत्मा हवेली में चली गयी और ठाकुर साहब अपनी नित्य कर्म कर के घर आ गये मन में एक निर्णय ले कर(क्रमशः)
Seema Priyadarshini sahay
17-Feb-2022 06:12 PM
बहुत ही रोचक कहानी है मैम
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Inayat
14-Feb-2022 10:30 PM
बेहद खूबसूरत स्टोरी
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Monika garg
15-Feb-2022 09:25 AM
धन्यवाद आपका
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