Monika garg

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खता क्या थी मेरी ?

गतांक से आगे...
           दरवाजे पर हुई दस्तक से मन एक बार को कांप गया कही वो तो...।पर जब दरवाजा खोला तो सामने पिता जी खड़े थे ।आज शायद जल्दी आ गये थे।छोटी मां के जाने के बाद आज पिता जी का लाड़ मेरे लिए उपजा था सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,"क्या बात बिटिया सोई नहीं अब तक।"मैने हकलाते हुए कहा,"नहीं पिताजी"मुझे डर था कहीं दोपहर वाली बात ना मुंह से निकल जाए।पिता जी अपनी ही धुन में कहें जा रहे थे,"बिटिया ! मैं क्या करूं लाचार हूं तेरी छोटी मां के आगे मेरी एक नहीं चलती ।बेटी तू चिंता मत कर तेरे लिए ऐसा भर(दुल्हा) ढूंढूं गा जो मेरी बेटी को पलकों पर रखें गा।
       अब मैं पिताजी से क्या कहती कि पिताजी आज ही मैं अपने सपनों के राजकुमार से मिली हूं। मैं चुप चाप पैर के अंगूठे से आंगन के फर्श की मिट्टी खरोचती रही। पिताजी को खाना खिलाने के बाद मैं अपने कमरे में आ गयी मन को कहीं चैन नहीं था पहला प्यार और पहले अहसास की चोट बहुत गहरी होती है । मैं अपने और उस के विषय में सोचते-सोचते ना जाने कब सो गयी।सुबह होने पर मैंने रमा को जगाया ।रात को गिरने की दहशत से रमा से खाना भी नहीं खाया गया । मैंने उसे कुल्ला करके आने को कहा तब तक मैंने फटाफट उसके लिए खाना परोस दिया।रमा अभी भी डरी हुई थी पर घर में पिताजी को ये बात पता ना चले कि वो दोनों चोरी चुपके घर से बाहर और वो भी मेला देख कर आयी थी इस लिए सहज होने की कोशिश कर रही थी। पिताजी के काम पर जाते ही वह मेरे पास आकर बैठ गयी और कल का वाकया याद करने लगी बोली,"दीदी अगर सैफ ना होते तो हमारी जान ही ना बचती।"मैंने भी अपने मन के भाव को छिपा कर पूछा,"कौन सैफ?" अरे वही जिन्होंने मुझे झूले से गिरने से बचाया था।आप नहीं जानती ये अपने बड़े भाई सोहन के अच्छे दोस्त हैं और भाई जब भी नौकरी से छुट्टी पर आते हैं तो ये एक बार जरूर भाई से मिलने आते हैं।पर आप को कैसे पता होगा आप तो सारा दिन घर के काम में लगे रहती हो।पता है कितनी बार सैफ भाई ने आप के हाथों बने खाने की तारीफ की है।पर पता नहीं मां को वो एक आंख नहीं सुहाते। हमेशा मुंह बिचकाती रहती है।"जैसे ही रमा ने ये बात कही ऐसा लगा जैसे सैफ की छुअन मुझे छूकर चली गयी। मैं भामरी प्यार के रास्ते पर चल पड़ी थी उसका मुझे हक से झूले के एक ओर ले जाना ,मेरे चेहरे पर आंसुओं को बर्दाश्त ना कर पाना , सरपरस्त बन कर घर तक छोड़ना।बस एक लड़की को अपने जीवन साथी में ओर क्या चाहिए। हां सैफ क्या करते हैं ये रमा से पता चल ही गया था बहुत ऊंचे खानदान से थे पिता का बहुत बड़ा व्यापार था साथ के गांव के खानदानी रईस थे।
      बस मैं तो उस में अपने भावी जीवन साथी के दर्शन करने लगी थी इस प्यार के अहसास में मैं यह भी भूल गरी कि मेरा परिवार कितना कट्टर समर्थक है अपने धर्म और अपनी आन बान का।तभी तो छोटी मां कहीं जाने नहीं देती थी।मेरे को भगवान ने भी  फुर्सत में बनाया था।इस लिए छोटी मां अपने चाचा के लड़के के साथ मेरा रिश्ता करवाना चाहती थी ।जो मुझ से 15 साल बड़ा था।पर नियति ने तो कुछ और ही लिखा था भाग में..

   ना जाने मेरे भाग में क्या लिखा था ददू ? नियति ना जाने कौन से मोड़ पर ले जा रही थी मुझे।सैफ जैसे मेरे दिलो-दिमाग पर छा गया था मुझे यह भी भान नहीं रहा कि उसकी और मेरी जात बिरादरी बिल्कुल अलग है हमारा खान-पान , रहन-सहन सब जुदा था पर मन उसकी ओर खींचा चला जा रहा था।कहते हैं प्यार अंधा होता है वो ही बात मेरे साथ होरही थी मुझे भी अच्छा बुरा कुछ सूझ नहीं रहा था जब जरूरत से ज्यादा किसी को दबाया या उसकी इच्छाओं का हनन किया जाता है तो वो ओर मुखर हो जाता है।
‌              छोटी मां तो मायके गयी थी पीछे से बड़े भाई छुट्टी में घर आये । मैंने बहुत जतन वह प्रेम से खाना बनाया।भाई भी मां की अनुपस्थिति में मेरे बहुत लाड़ करता था मेरे लिए शहर से बहुत सुंदर चांदी की पायल लाया था । मुझे बड़े भाई प्यार से मुनिया कहते थे बोले,"ले मुनिया ये पायल रख लें अपने छोटे-छोटे पैरों में पहनना। बहुत दिनों से मन था तेरे लिए कुछ लाऊं पर मां मेरी लायी चीज तेरे पास पहुंचने ही नहीं देती थी।अब सुन छोटी मां को मत दिखाना नहीं तो तुम से ले लेगी।"मैंने भी भाई की लाई हुई पायल को सहेज कर रख दियाऔर फटाफट खाना परोस लायी।जैसे ही बड़े भाई खाना खाने बैठे इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई।पहले तो मुझे मौका ही नहीं मिलता था दरवाजा खोलने का छोटी मां को ये पसंद नहीं था कि मैं किसी के सामने आऊ पर आज तो मुझे ही दरवाजा खोलना था जब मैं दरवाजे के पास गयी तो एक सिहरन सी दौड़ गयी, मन ने कहा कहीं सैफ तो नहीं है मैं तो जैसे दीवानी सी हो गयी थी।जैसे ही दरवाजा खोला भगवान ने जैसे मेरी सुन ली सामने सैफ ही खड़े थे दोनों हाथ जोड़े हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।मेरी तो जैसे जान ही निकल गई। इतने में अंदर से भाई ने आवाज लगाई ,"कौन है मुनिया?"धीरे से सैफ मुस्कुराते हुए मेरे पास से निकलते हुए फुसफुसाए ,"अच्छा जी मोहतरमा का एक ओर भी नाम है हमें तो एक ही नाम पता था।"मैं शर्म से गढ़ी जा रही थी।सैफ जोर से आवाज लगाते हुए भाई के पास चले गये ,"अरे मैं हूं भई। "भाई ने जब सैफ को देखा तो बड़े जोश से बोले,"अरे आ यार सैफ ।तू कैसे टपक पड़ा आज ही तो आया हूं शहर से इतनी जल्दी तेरे पास खबर भी पहुंच गयी ।"बस यार दिल से दिल की राह होनी चाहिए रास्ते अपने आप निकल आते हैं,सैफ मुझे देख कर मुस्कुरा दिए। मुझे तो इतनी शर्म आ रही थी कि कहीं कोना मिले और मैं छुप जाऊ। बड़े भईया बोला रहे थे और सैफ! खाना तो खायेगा , कनक जा एक थाली सैफ के लिए भी लगा दे ।जी भईया ! मैं यह‌कह कर रसोई घर में खाना परोसने चली गयी। क्या क्या डालूं उनकी थाली में मन कर रहा था दुनिया का सारा प्यार उनकी थाली में डाल दूं।जब मैं खाना लायी तो सैफ ने पहला निवाला खाते ही कहा,"माशाअल्लाह! जिन्होंने भी खाना बनाया है अमृत है उनके हाथों में।कहते हैं ना कि खाना अच्छा बना हो तो बनाने वाले के हाथ चूमने का दिल करता है पर ये बात मैं कह नहीं सकता।"इतना कह कर सैफ जोर से हंस पड़े बड़े भाई भी मुस्कुराते हुए बोले ,"यार अन्नपूर्णा है मेरी बहन जिस के भी जाए गी भाग खुल जाएं गे उस के तो। "सैफ मेरी तरफ मुस्कुराते हुए सिर हिलाते हुए बोले,"बिल्कुल यार तुम्हारी बहन तो सही में खुदा की ओर से दिया तोहफा है।"मुझे ऐसे लग रहा था जैसे सैफ की खुशबू मेरे अंदर से आ रही हो।जब तक सैफ घर रहे मैं उनके इर्द-गिर्द मंडराती रही ।कभी अपने में सिकुड़ती कभी मुखर ।जब सैफ जा रहे थे तो मन कर रहा था वो ना जाए। क्या यही प्यार था ददू?"कनक ठाकुर साहब की तरफ देखते हुए बोली। ठाकुर महेन्द्र प्रताप उस भामरी को देखें जा रहे थे जो जीवित ना होते हुए भी जीवन की बातें कर रही थी ।इतने में दुकान से थोड़ी सी दूरी पर मंदिर का घंटा बजा उठा।कनक उठते हुए बोली ,"अच्छा ददू जाने का समय हो गया अब चलती हूं।कल फिर आऊंगी तुम जरूर आना ।" जरूर आऊं गा बिटिया मैं आऊं गा और तेरा आगे का वृत्तांत सुनु गा ।यह कह कर कनक की आत्मा हवेली में चली गयी और ठाकुर साहब अपनी नित्य कर्म कर के घर आ गये मन में एक निर्णय ले कर(क्रमशः)

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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

17-Feb-2022 06:12 PM

बहुत ही रोचक कहानी है मैम

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Inayat

14-Feb-2022 10:30 PM

बेहद खूबसूरत स्टोरी

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Monika garg

15-Feb-2022 09:25 AM

धन्यवाद आपका

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